चंडीगढ़,(सुनीता शास्त्री) 05.12.19- लंबे समय से चली आ रही जिज्ञासा और उत्सुकता ही थी, जिसने अमेरिका के एक दंत चिकित्सक डॉ. दलवीर सिंह पन्नू को पाकिस्तान में 84 सिख विरासत स्थलों और धार्मिक स्थलों का गहराई से अध्ययन करने और उनका इतिहास खंगालने के लिए बाध्य किया। ये वो सिख स्मारक थे, जो 1947 के भारत-पाक विभाजन के दौरान अतीत के गर्त में विलुप्त हो गये।डॉ. दलवीर सिंह पन्नू को इस विषय पर अपनी पुस्तक द सिख हेरिटेज - बियॉन्ड बॉर्डर्स को पूरा करने में 11 साल लग गये। डॉ. पन्नू ने चंडीगढ़ प्रेस क्लब में आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान इस किताब का विमोचन किया और इस शोध में आयी कठिनाई और मुश्किलों के बारे में बात की।अमेरिका जाने के करीब दो साल पहले तक पंजाब के नवांशहर जिले में अपने गांव फराला के पास, फगवाड़ा में एक दंत चिकित्सक के रूप में प्रेक्टिस करते रहे, 46-वर्षीय डॉ. पन्नू ने कहा, 'मेरी किताब इस विषय पर लिखे गये सामान्य दस्तावेजों से अलग है। इसका मुख्य कारण मेरी रिसर्च और स्मारकों पर फारसी व उर्दू में उकेरी गयी जानकारियों को ब्रिटिश अभिलेखागार में मौजूद भारतीय कानूनी रिपोर्टों के साथ इनका मिलान करना है। इसके पीछे आइडिया यह था कि अलग-अलग भाषा स्रोतों का अध्ययन किया जाये।लेखक ने सिख इतिहास को समझने में पाठकों को सक्षम करने के लिए व्यापक विश्लेषण के अलावा अन्य स्रोतों के साथ क्रॉस-रेफरिंग की प्रक्रिया को अपनाया। इसमें गहन पूछताछ, विश्लेषण और सैकड़ों स्रोतों की जांच शामिल थी।डॉ. पन्नू ने कहा, पुस्तक में 84 दस्तावेजों में से प्रत्येक को एक अध्याय समर्पित किया गया है। इनमें से 60 से अधिक तो गुरुद्वारे ही हैं, जो पाकिस्तान का दौरा करने वाले प्रथम छह सिख गुरुओं के नाम पर स्थापित हैं। आज, ये स्मारक किसी विरासत को साझा करने वाले लोगों के शांतिपूर्ण और सामंजस्यपूर्ण अतीत के प्रतीक हैं। उन्होंने जानकारी दी कि किताब में घटनाओं के बारे में विभिन्न ऐतिहासिक विवरण खोजने और एक दशक लंबे फील्डवर्क का ब्यौरा दर्ज किया गया है। मिसाल के तौर पर, वह बताते हैं, जनम सखियों (जन्मपत्री/ जन्म और जीवन यात्रा कथा) में सिख गुरुओं की चमत्कारी शक्तियों के बारे में विवरण हैं। डॉ. पन्नू ने कहा मैंने पेशेवर फोटोग्राफरों की एक बड़ी टीम को काम पर लगाया और 2008 व 2016 में दो बार पाकिस्तान का दौरा किया। हमने ड्रोन फोटोग्राफी भी की और चुनिंदा स्थलों की वीडियोग्राफी भी की। लेखक ने पाठकों की सहूलियत के लिए प्राथमिक स्रोतों और गुरुमुखी शिलालेखों के अनुवाद देकर विरासत में दिलचस्पी रखने वालों की इस बारे में समझ बढ़ाने का प्रयास किया है। उन्होंने अपने लेखने से इन स्थलों की सुंदरता और इतिहास को एक नया आयाम दिया है।डॉ. पन्नू का कहना है,मैं इस अवसर पर शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) और अन्य सिख निकायों से अनुरोध करूंगा कि वे इस किताब को अपने पुस्तकालयों में शामिल करें, ताकि किताब का फायदा अधिक से अधिक लोगों को मिल सके। इस तरह समृद्ध सिख संस्कृति और विरासत को न केवल संरक्षित किया जा सकेगा, बल्कि सही मायनों में उनका प्रचार भी होगा।