CHANDIGARH,28.03.20-दिल्ली ही नहीं देश के उन सभी स्थानों से हजारों लोग अपने गावो को भूखे पेट पैदल मार्च कर रहे है जहा की दिहाड़ी मजदूरी नहीं मिल रही है। दिल्ली के गाजीपुर बॉर्डर पर इस तरह पैदल मार्च करते लोग दिखाई दिए। इन लोगो को किसी ने झूठ कह दिया कि उत्तर प्रदेश ले जाने वाली बस गाजीपुर बॉर्डर पर मिल रही है। जब बस नहीं मिली तो ये लोग सिर पर बोझ लिए भूखे पेट महिला ओर बच्चो के साथ ३०० से ४०० किलोमीटर की दूरी तय करने पैदल मार्च पर निकल पड़े। दिल्ली से क्यों जा रहे है इस सवाल पर कहते है कि यहां कोई मजदूरी मिल नहीं रही। खाने पीने का सामान रहा नहीं। पुलिस तंग कर रही है। ऐसे में अपने गांव जाना ही सही है। ये वो ही लोग है जिन्होंने दिल्ली विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल की हैट्रिक बनवाई थी। आज केजरीवाल इनकी सुध लेने नहीं पहुंच रहे। सवाल यह भी खड़ा हुआ है कि हाल मै देश की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा घोषित एक लाख सत्तर हजार करोड़ के राहत पैकेज में इनका कोई हिस्सा नहीं है क्या? दो रुपए किलो गेहूं ओर तीन रुपए किलो चावल इनको नहीं दिए जा रहे क्या? हजार रूपए प्रति सप्ताह इनको क्यों नहीं दिए जा रहे? कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी,राहुल गांधी ओर प्रियंका गांधी हमदर्दी मै इनके साथ पैदल मार्च क्यों नहीं कर रहे? वामपंथी कॉमरेड कहा है वो इनके साथ क्यों नहीं खड़े है? विदेशो से कोष लेने वाले एन जी ओ भी इन्हें सभलने नहीं पहुंचे। ये हजारों लोग समाजवाद ओर धर्मनिरपेक्षता को समाहित किए संविधान के तहत दिल्ली राज्य एवम् केंद्र की सरकार चुनने के बाद भूखे पेट पैदल मार्च करने को मजबूत है। उन्हें भूखे पेट मरने के बजाय कोराना की जोखिम की अनदेखी मंजूर है। हाल यह है कि गुजरात के सूरत से मधयप्रदेश के रतलाम तक एक पति पत्नी ने ३९०किलोमीटर की दूरी ८३ घंटे में रेल की पटरियों के किनारे चल कर पूरी कर ली। इन लोगो के गांव पहुंचने पर अब तक अछूते गांवो में संक्रमण को कोई जोखिम होगी इस ओर भी किसी का ध्यान नहीं है। कारण ये लोग म मतदान कर चुके है ओर लगभग पांच साल किसी को इनकी जरूरत नहीं है। सड़क भी अनेक निर्वाचन क्षेत्रों से गुजरती है। कोई एक विधायक या सांसद जिम्मेदार नहीं। पूर्वांचलियों के रहनुमा दिल्ली भाजपा के नेता मनोज तिवारी को भी अब क्या लेना देना है। दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान गलियों में परचे बांटने निकल पड़े केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को भी कोई मतलब नहीं।दिल्ली में कांग्रेस तो शून्य पर आ गई लेकिन उसे तब भी मतलब नहीं क्योंकि अभी चुनाव नहीं हो रहे है।मोहल्ला क्लीनिक ओर आदर्श स्कूलों का मॉडल पूरी दुनिया को दिखाते आ रहे अरविंद केजरीवाल इन मजदूरों की मदद का कोई मॉडल नहीं दिखाना चाहते।
यह लॉक डॉउन का प्रभाव है। पहले जब महामारी की शुरुआत हुई तो केंद्र की सरकार को राजनीति से फुर्सत नहीं मिली ओर जब हालत बेकाबू दिखाई दी तो हड़बड़ी में लॉक डॉउन का सहारा लिया। अब प्रधानमंत्री मोदी ने जी २० की वीडियो कनफ्रेंसिंग में विश्व स्वास्थ्य संगठन को स्वायत्त बनाने का मुद्दा उठाया। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोराना वायरस को ११ मार्च को यानी कि बड़ी देर से महामारी घोषित किया। चीन में यह वायरस पिछले साल दिसंबर में ही सक्रिय हो गया था। संकेत यही है कि चीन के प्रभाव में महामारी घोषित करने में विलम्ब किया गया। अब भी चीन संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक कोराना संकट पर नहीं होने दे रहा है। चीन सुरक्षा परिषद का स्थाई सदस्य है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने यह तो मान ही लिया है कि विश्व स्वास्थय संगठन ने कोराना संकट को महामारी घोषित करने में देर की है।उनका मंतव्य है कि संक्रमण को रोकने के वैश्विक प्रयास देर से शुरू किए गए। अगर समय रहते क्वारेंटिन ओर आइसोलेशन के इंतजाम पहले शुरू लिए जाते ओर आव्रजन पर जांच देर होने से पहले की जाती तो संक्रमण को १८० देशों तक फैलने से रोका जा सकता था। आज करीब २५हजार लोगों की मौत और साढ़े चार लाख लोगो को संक्रमित होने से रोका जा सकता था। भारत तो एक संप्रभु राष्ट्र है उसे विश्व स्वास्थय संगठन की घोषणा का इंतजार करने की जरूरत भी नहीं थी। उसने अपनी सीमाओं पर कोराना पॉजिटिव को रोकने के बंदोबस्त क्यों नहीं किए।एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले दो माह में पन्द्रह लाख लोग विदेश से भारत आए ओर किसी की जांच नहीं हुई।बाद में उठाए जाने वाले कदम हजारों लोगो के पैदल मार्च की समस्या ओर मानवीय त्रासदी को ही जनम देंगे। देश के लोग भी इस आपराधिक लापरवाही को क्षमा करने को तैयार है। उनका कहना है कि यह हाल तो पूरी दुनिया में है। लेकिन वे यह सोचने को तो तैयार हो जाए कि पूरी दुनिया में लापरवाही हुई है। इटली में चीन से ज्यादा करीब आठ हजार लोग मरे हे। यह संख्या चीन से अधिक है जबकि वायरस चीन में पैदा हुआ था। अमरीक,जर्मनी ओर फ्रांस भी चीन से अधिक नुकसान उठा रहे है।