चण्डीगढ़, 02.12,24- : आज संस्कार भारती, चण्डीगढ़ एवं बृहस्पति कला केंद्र, चण्डीगढ़ के संयुक्त तत्वावधान में मासिक साहित्य सरिता का आयोजन किया गया। संस्कार भारती के मार्गदर्शक प्रोफेसर सौभाग्य वर्धन ने बताया कि कार्यक्रम का शुभारंभ सुरजीत सिंह धीर ने मां शारदा के गीत से किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार प्रेम विज ने की। मंच संचालक प्रसिद्ध कवि डॉ. अनीश गर्ग ने अपनी पंक्तियों से माहौल बनाते हुए कहा कि ओढ़ने लगा हूं ख़्याल तेरा, जाड़े की रात में, सीने से लगा के रूमाल तेरा, जाड़े की रात में..., नवोदित कवियत्री पल्लवी रामपाल ने कहा कि परमानंद तहत रोम-रोम में प्रभु का आभास, चक्षु धारा बहने लगी,आज हुई ये ख़ास, चित्त अश्रुओं से, हर क्षण आने की करे आस...,वरिष्ठ कवियत्री उमा शर्मा ने पढ़ा कि मैं एक औरत हूं, ना जीने का एहसास, ना मरने की तमन्ना, बस दूसरों की आस ही आस..., डॉ. अनीश गर्ग ने अपनी कविता से दर्द यूं ब्यां किया कि उनसे बिछड़े ज़माना हुआ, फिर भी न जाने क्यों आती है हिचकियां, वो शख़्स जाकर भी गया नहीं, अक्सर आ कर बताती हैं हिचकियां...।

सुमन ने कुछ यूं कहा कि ऐ बंदे रच कर मानव कृति, ख़ुदा भी मुस्कुराया था..., विकास सीढ़ी के शिखर पर, बड़े मान से तुझे बिठाया था, नीरू मित्तल ने सकारात्मक दृष्टिकोण रखते हुए कहा कि दबा दो मुझे मिट्टी में चाहे, मैं बीज हूँ एक दिन फिर फूट जाऊंगी..., सुधा मेहता ने कहा कि मुलाकात होती है रोज, कुछ कर्तव्यपरायण भेड़ों से, निरर्थक, निर्लज, नीरस, बेपरवाह! बिन सोचे बिन समझे, एक साथ भरती हैं आह..., आरके भगत ने तरन्नुम में अपनी ग़ज़लें रखीं। प्रोफेसर सौभाग्य वर्धन ने उद्बोधन के साथ आए श्रोताओं का धन्यवाद अर्पित किया। इस कार्यक्रम में विशेष तौर पर राजन सुदामा, कादंबरी वर्धन, यशपाल कुमार भी उपस्थित रहे।