चण्डीगढ़19.03.24- : महिला समन्वय मंच, चण्डीगढ़ द्वारा टैगोर थिएटर में नारी शक्ति सम्मेलन आयोजित किया गया जिसमें विश्व प्रसिद्ध पंजाबी गायिका डॉ. सुखमिंद्र कौर बराड़ (सुखी बराड़) , जो संस्कार भारती, पंजाब की अध्यक्ष भी हैं, मुख्य अतिथि थीं जबकि एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड, सुप्रीम कोर्ट ऑफ़ इंडिया श्रीमती प्रतिमा लाकड़ा व हिंदू अध्ययन केंद्र, दिल्ली विश्वविद्यालय की संयुक्त निदेशक डॉ. प्रेरणा मल्होत्रा मुख्य वक्ता तथा महिला समन्वय, पंजाब प्रांत की सह संयोजिका श्रीमती तमन्ना चर्चा प्रवर्तिका के तोर पर उपस्थित हुईं। कार्यक्रम की संयोजिका प्रतिभा कौशिक गौतम ने बताया कि वर्तमान में भारतीय नारी परिवार व राष्ट्र से लेकर न केवल भारत बल्कि विश्व पटल पर अपनी पहचान बना रही है। राष्ट्र निर्माण में मातृ शक्ति का यथा संभव जागरण व नेतृत्व हो, इस उद्देश्य से ये नारी शक्ति सम्मेलन आयोजित किया गया। उन्होंने बताया कि सुखी बराड़ को सुनने के लिए सभी उत्सुक थे और उसी के अनुरूप उनका सम्भाषण रहा।
डॉ. बराड ने अपने प्रेरणा संवाद में बताया भारतीय इतिहास महिलाओं की उपलब्धियों से भरा पड़ा है। आनंदीबाई गोपालराव जोशी पहली भारतीय महिला चिकित्सक थीं और संयुक्त राज्य अमेरिका में पश्चिमी चिकित्सा में दो साल की डिग्री के साथ स्नातक होने वाली पहली महिला चिकित्सक थीं। सरोजिनी नायडू ने साहित्य जगत में अपनी छाप छोड़ी। हरियाणा की संतोष यादव ने दो बार माउंट एवरेस्ट फतह किया। बॉक्सर एमसी मैरी कॉम एक जाना-पहचाना नाम है। हाल के वर्षों में, हमने कई महिलाओं को भारत में शीर्ष पदों पर और बड़े संस्थानों का प्रबंधन करते हुए भी देखा है। अरुंधति भट्टाचार्य, एसबीआई की पहली महिला अध्यक्ष, अलका मित्तल, ओएनजीसी की पहली महिला सीएमडी, सोमा मंडल, सेल अध्यक्ष, कुछ और नामचीन महिलाएं हैं, जिन्होने विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया है। कोविड-19 के दौरान कोरोना योद्धाओं के रूप में महिलाओं डॉक्टरों, नर्सों, आशा वर्करों, आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं व सामाजिक कार्यकर्ताओं ने अपनी जान की परवाह न करते हुए मरीजों को सेवाएं दीं व साथ ही कोरोना के खिलाफ टीकाकरण अभियान को सफल बनाने में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने कहा कि प्राचीन भारतीय संस्कृति में महिलाओं को पुरुषों के बराबर माना जाता था और लिंग के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाता था, इसके बजाय महिलाओं को समाज द्वारा सम्मानित किया जाता था, और उस समय समाज महिलाओं को जननी मानता था जिसका अर्थ है माँ, हिन्दू धर्मग्रंथों में भी नारी को देवी माना गया है। वे अपने पूर्ण बुनियादी अधिकारों का आनंद लेते थे जहाँ वे शिक्षा प्राप्त करने के लिए स्वतंत्र थे, उस समय ऋषियों की पत्नियां अपने पतियों के साथ आध्यात्मिक गतिविधियों में भाग लेने के लिए तैयार हो सकती थीं, उन्हें अर्धांगिनी के रूप में भी जाना जाता था। उस काल में स्त्रियों को भी पुरुषों के समान ही समान जीवन जीने को मिलता था। उन्होंने कहा कि कभी बेटियों की भागीदारी केवल सांस्कृतिक आयोजनों तक सीमित रहती थी, लेकिन आज भारत की बेटियां जल, थल, नभ और अंतरिक्ष में भी अपनी क्षमता का लोहा मनवा रही हैं, वह वर्तमान का यथार्थ भी है और बदलते भारत की नई तस्वीर भी।