चण्डीगढ़, 31.12.25- : नृसिंह भक्ति सेवा संस्थान भारतवर्ष की ओर से दशहरा मैदान, सैक्टर 56 में आयोजित 1386वीं भागवत कृष्ण कथा गोपी गीत महायज्ञ के छठे दिन पंजाब के महामहिम राज्यपाल एवं चण्डीगढ़ के प्रशासक गुलाब चंद कटारिया मुख्य अतिथि के रूप में पहुंचे जहां नृसिंह भक्ति सेवा संस्थान की राष्ट्रीय प्रभारी साध्वी मां देवेश्वरी जी एवं समाजसेवी सुभाष शर्मा ने शाल ओढ़ाकर एवं भागवत गीता पुस्तक भेंट कर उनका स्वागत किया। उसके बाद राज्यपाल ने व्यासपीठ पर विराजमान नृसिंह पीठाधीश्वर स्वामी रसिक महाराज का माल्यार्पण कर आशीर्वाद लिया। कथा प्रवचन करते हुए स्वामी रसिक महाराज ने गोपी गीत के माध्यम से समाज में बढ़ रही कन्या भ्रूण हत्या को महापाप बताते हुए कहा कि अगर कन्या ही नहीं रहेगी तो नवरात्रि का महत्व समाप्त हो जाएगा। अगर पुत्र चाहिए तो कन्या का होना बहुत जरूरी है।
अपने संबोधन में महामहिम राज्यपाल गुलाब चंद कटारिया ने कहा कि नृसिंह पीठाधीश्वर स्वामी रसिक महाराज जी एक ऐसे विलक्षण संत व्यक्तित्व हैं, जिनमें आध्यात्मिक साधना, उच्च शैक्षणिक योग्यता और समाज-सेवा का अद्भुत समन्वय देखने को मिलता है। देश-विदेश में अब तक स्वामी जी ने 1 हजार 385 भागवत कथाओं का सफल आयोजन किया है।
प्रशासक ने बताया कि स्वामी जी के उत्कृष्ट योगदान को राष्ट्रीय स्तर पर भी सम्मान प्राप्त हुआ है। केंद्र की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के कार्यकाल में उन्हें मानव संसाधन विकास मंत्रालय की परिषद में स्थायी सदस्य के रूप में नामित किया गया। काशी विद्वत परिषद द्वारा आपको भागवत भूषण सम्मान से अलंकृत किया गया है। वर्तमान में स्वामी जी सनातन धर्म विकास परिषद, उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष के रूप में कार्यरत हैं, जहाँ उन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त है। स्वामी जी का जीवन वास्तव में सेवा, साधना और सनातन मूल्यों के संरक्षण का प्रेरणादायी उदाहरण है।
उन्होंने कहा कि भागवत महापुराण की उत्पत्ति भारतीय आध्यात्मिक परंपरा का एक पावन और गूढ़ अध्याय है। पुराण परंपरा में श्रीमद्भागवत को भक्ति, ज्ञान और वैराग्य का सार माना गया है। इसकी रचना महर्षि वेदव्यास ने की, जिन्होंने वेदों का संकलन, महाभारत और अठारह पुराणों की रचना के बावजूद अपने भीतर आत्मिक अपूर्णता का अनुभव किया, क्योंकि भक्ति-तत्त्व का पूर्ण और रसपूर्ण प्रकाशन अभी शेष था।
इसी अवस्था में देवर्षि नारद ने व्यास जी को यह बोध कराया कि ईश्वर की लीलाओं, नाम और गुणों का सरल, सर्वसुलभ और भावपूर्ण वर्णन ही आत्मा को संतोष और शांति दे सकता है। उनके उपदेश से प्रेरित होकर व्यास जी ने समाधि में भगवान श्रीकृष्ण के दिव्य स्वरूप और लीलाओं का साक्षात्कार किया, जिसके परिणामस्वरूप श्रीमद्भागवत महापुराण की रचना हुई। यह ग्रंथ केवल कथाओं का संग्रह नहीं, बल्कि जीव और ईश्वर के बीच प्रेम, समर्पण और एकात्मता का जीवंत दर्शन है।