चण्डीगढ़, 04.10.24- : श्री श्याम परिवार, ट्राईसिटी द्वारा सेक्टर 30 स्थित अग्रसेन भवन में आयोजित की जा रही दिव्य श्रीमद्भागवत कथा में वृन्दावन से पधारे भागवत शरण श्री रविनन्दन शास्त्री जी अपनी दिव्य वाणी से भागवत कथा करते हुए बताया कि पुराण का अर्थ है - जो प्राचीन होते हुए भी नवीन बना हुआ है। पुरा अपि नवं इति प्रमाणम्। पुराण में 5 लक्षण होते हैं, परन्तु; श्रीमद्भागवत पुराण नहीं, अपितु; महापुराण है, जो सर्गादि 10 लक्षणों से युक्त है तथा सभी पुराणों का सम्राट है।
जीवन जीने की एक अद्धभुत शैली को बताते हुए यह महापुराण वैष्णवों का मुकुटमणि बना है। भगवान् श्रीकृष्ण का शब्दमय विग्रह, आध्यात्मिक रस की अलौकिक प्याऊ, अशांत जीवन को शान्ति प्रदान करने वाला दिव्य अमृत रस, या यों कहिये नर को नारायण बनाने वाली दिव्य चेतना है श्रीमद्भागवत महापुराण। इसे श्रीमद्भागवतम् या केवल भागवतम् भी कहते हैं । ज्ञान, भक्ति और वैराग्य का यह महान ग्रन्थ है। श्रीमद्भागवत महापुराण में भगवान् नारायण के अवतारों का ही वर्णन है । नैमिषारण्य में शौनकादि ऋषियों की प्रार्थना पर लोमहर्षण के पुत्र उग्रश्रवा सूत जी ने इस पुराण के माध्यम से श्रीकृष्ण के चौबीस अवतारों की कथा कही है। श्रीमद्भागवत महापुराण में बार-बार श्रीकृष्ण के ईश्वरीय और अलौकिक रूप का ही वर्णन किया गया है। इसके पठन एवं श्रवण से भोग और मोक्ष तो सुलभ हो ही जाते हैं । कहाँ तक कहें भगवान के चरणकमलों की अविचल भक्ति भी सहज प्राप्त हो जाती है । मन की शुद्धि के लिए इससे बड़ा कोई अन्य साधन नहीं है । सिंह की गर्जना सुनकर जैसे भेड़िए भाग जाते हैं, वैसे ही भागवत के पाठ से कलियुग के समस्त दोष नष्ट हो जाते हैं । इसके श्रवण मात्र से हरि हृदय में आ विराजते हैं।