HISAR, 11.03.25
प्रिय दोस्तो, स्नेहियो और विभिन्न संबंधों के पाश में बंधे सहयोगियो!
मैं आप, सबसे साढ़े तीन माह से दूर हूं, सोशल मीडिया से कोसों दूर, अपनी ही उदासी की गुफा में छिपा बैठा, बस, खामोश! कितने फोन आये, कितने मिलने आना चाहते थे, सबको रोका! मैं अपनी बेटी की बीमारी से लड़ते लड़ते खुद थक गया! यह सन् 1999 से अब तक तीसरा हमला था। दो बार पीजीआई, चंडीगढ़ में और पहली बार सन् 1999 में रोहतक, पीजीआई से आप सबकी दुआओ से मैं और नीलम इसे भगवान् से लड़ झगड़ कर, हाथ जोड़कर वापिस ले आये और 29 नवम्बर के रात दस बजे तक हम तीनों की ज़िन्दगी पूरी तरह पटरी पर थी, लय में थी। हमें तीस नवम्बर की सुबह जालंधर निकलना था, बड़े भाई सिमर सदोष की पंकस अकादमी के समारोह के लिए, जबकि बेटी रश्मि और उसके पति यशवीर को निकलना था नैना देवी के दर्शन व बाद में कसौली के लिए! हमने जालंधर के लिए गाड़ी कर रखी थी। दस बजे यशवीर आ गया, ले जाने के लिए और हम बाप बेटी इससे पहले प्रतिदिन की तरह बाज़ार से सामान ले आये थे। मिलजुलकर रोज़ की तरह इकट्ठे खाना गया। दस बजे यशवीर अपनी फारचूनर ले आया और दोनों हंसते खेलते एच एयू के चार नम्बर के गेट के सामने नये बनाये घर में चले गये। मैंने चलते चलते कहा कि रिशी, तेरे बिना पहली बार अकेले जायेंगे, मज़ा नहीं आयेगा और वे बिश्नोई काॅलोनी वाले घर चले गये!
रात बारह बजे यशवीर रश्मि का बैग हाथ में थामे उसके साथ लौट आया, यह कह रही है कि दिल घबरा रहा है मैंने मज़ाक में कहा-क्यों, दो घंटों में ही ब्रह्मांड घूम आये या लड़ भिड़कर प्रोग्राम रद्द कर दिया? यशवीर ने कुछ नहीं कहा लेकिन रश्मि अंदर आकर बैड पर लेट गयी और कहा-बहुत सिरदर्द हो रहा है पापा । गाड़ी में हम चारों बैठे और सर्वोदय अस्पताल, जो घर के पास ही है, इमर्जेन्सी में ले गये! वहां जूनियर डॉक्टर रजत मौजूद थे। डाॅ उमेश कालड़ा से घर बात की, कभी सन् 2022 जनवरी में भी यही हादसा हुआ था बेटी के साथ और डाॅ का लड़ा ने संभाल लेने का विश्वास दिलाया था और ठीक भी कर लिया था। मार्च तक स्वस्थ होकर ड्यूटी पर जाने लगी थी, हालांकि दवाई दो माह बाद मई, 22 तक चलती रही। मैं कृतज्ञ था,डाॅ उमेश कालड़ा ने घर पर इंजेक्शन का प्रबंध भी कर दिया था। ऋतु नाम की नर्स इंजैक्शन लगाने सुबह शाम आती रही पूरे सप्ताह! बेटी खुश और दिन 29 नवम्बर तक अच्छे चलते रहे। हम भी बाप बेटी, रोज़ शाम एम सी, डीसी कालोनी में हर शाम सब्ज़ी भाजी, दूध आदि जरूरत का सामान लेने जाते, नीलम रात का खाना तैयार कर लेती, इतने में। हम मिलबैठकर खाना खाते, आधे घंटे बाद दूध, कुछ देर तीनों अपने अपने मोबाइल पर आविर्भाव और पिया के मस्त गाने के अंदाज का आनंद लेते । बड़ी बात कि आविर्भाव बिल्कुल हमारे दोहिते यानी रश्मि के इकलौते बेटे आर्यन से पूरी तरह मिलता जुलता होने के कारण, कुछ अतिरिक्त लाड से सुनते!
खैर! आता हूं 29 नवम्बर की उस मनहूस समय की ओर ! जब सब कुछ, , हम तीनों की ज़िन्दगी एक पल में क्या से क्या होगयी-जैसे पूरी तरह पटरी से उतर गयी। इसका सिटी स्कैन भी हुआ, जिसके बारे में शाॅट घर भेजे गये। डाॅ रजत ने कुछ गोलियां लिखीं, हमने कैमिस्ट को जगाया और डाॅ रजत ने कहा कि आप घर जा सकते हैं और यात्रा भी कर सकते हैं। घर लौटे लेकिन घर नही लौटते तो अच्छा रहता क्योंकि इसे भयंकर सिरदर्द होने लगा, छटपटाहट बढ़ने लगी। यशवीर बिश्नोई कालोनी वाले घर जा चुका था। रश्मि टांगें पटकने लगी, सिर पकड़कर दोनों तरफ रगड़ने लगी बुरी तरह ! नीलम ने देखा पांच बज गये दवाई का कोई असर नहीं । मैं डाबड़ा चौक तक बदहवास भागा गया और एक ऑटो रिक्शा सौ रुपये में किया और सर्वोदय चले। राह में मैंने डाॅक्टर उमेश कालड़ा को फोन पर अस्पताल आने का निवेदन किया लेकिन वे नाराज़ से बोले कि दाखिल क्यों नहीं करवाया ! मैंने बताया कि अपने डाॅ रजत से पूछिये, जिन्होंने हमें कुछ गोलियां लिखकर घर भेज दिया घर जाते ही यह दर्द जबरदस्त आने लगा है रश्मि की किस्मत या हमारी कोशिश में कमी रही। डाॅ उमेश कालड़ा ने कहा-आप इसे जिंदल ले जाइये। मैंने कहा कि जब आप ठीक कर चुके हैं तो आप ही आइये! वे नहीं माने और मैंने ऑटो वाले को ज़िदल अस्पताल ले चलने को कहा रश्मि की हालत खराब होने लगी, बेहोशी आने लगी और पहली बार सच कहता हूं कि ज़िंदल अस्पताल की इमर्जेंसी ने कोई साथ नहीं दिया । अंधेरा छंटने लगा, दिन धीरे धीरे बढ़ने लेकिन डाॅ अंकित गुप्ता घर से आ रहे हैं, ही होता रहा पर वे जब तक रश्मि पूरी तरह दर्द में बुरी तरह छटपटा रही थी, डाॅ अंकित गुप्ता के दर्शन हुए । जबकि ज़िंदल परिवार से मेरी निकटता सब जानते हैं। आठ नौ बजे के डाॅ अंकित गुप्त के दर्शन तब हुए जब मैंने डाॅ शमीम शर्मा को फोन कर हालात बयान नहीं किया। वे आदेश के बंधे, इलाज पर इतना कहकर चले गये कि यह मेरा केस नहीं बल्कि पंकज एलाबादी को बुला लीजिये। अब वही घर से मस्ती मौज में आये और बिना कुछ देखे आते ही ऐलान कर दिया-कहीं भी रेफर करवा लो चंडीगढ़ पीजीआई ले जाओ, हज़ारों रुपये की एम्बुलेंस कर लेते हैं। नीलम ने कहा कि आप दोबारा डाॅ उमेश कालड़ा से फोन कर लो न !
मैंने हिम्मत कर फोन किया कि आपने हमें जिंदल में
क्यों भेजा? उन्होंने कम से कम पांच घंटे लगा दिये और किया कुछ नहीं। और मैं इसे बारह बजे दाखिल कराने को तैयार था, फिर मुझसे ये कैसी नाराजगी? रात बारह से सुबह ग्यारह बजे रश्मि की बेहोशी बढ़ती चली गयी, जो इमर्जेंसी मेंं, आईसीयू में8052 जांची गयी! बल्कि उग्र होती चली। टांगें पकड़नी पड़ीं्हाथ रुई से बांधने पड़े । हमारे मन में जिंदल अस्पताल अपना प्यार होने के कारण , मन में गुस्सा, दुख, उदासी बहुत बहुत बहुत कुछ है। जो अपने नजदीकियों को नहीं जानते, वे अनजान गांव के आदमी का क्या हश्र करेंगे । मेरा, नीलम और रश्य्मि का निवेदन है कि इन डाक्टरों से सख्ती से पूछताछ किये रैफर की राय देने का वेतन लेते हैं आप? मुझसे तो एडमिशन की पूरी फीस दस हज़ार जमा करवा ली गयी और कर रहे हैं? चंडीगढ़ को रैफर किसलिए? फिर आपने इलाज कैसा किया? कालड़ा जी से भी सवाल कि आखिर पहले दाखिल क्यों नहीं किया? आखिर कोई कोशिश क्यों न समय की, इन्फैक्शन ने बर्बाद क्यों किया? एम्बुलेंस भी महंगी फीस पर ! आम आदमी जाये तो जाये कहां? डाॅ कालड़ा का सहयोग पूरा मिला, सम्मान भी। फोन भी जब तब उठा लेते हैं।
यदि बारह बजे रात दाखिल कर लेते तो इतना डैमेज, पीड़ा न भोगनी पड़ती हमें व रश्मि को । पहले आईसीयू में तीन चार दिन वेंटीलेटर और इन्फैक्शन 8052 पर यानी अर्ध बेहोशी ! शरारत कर मेडिकल पाइप न निकाल दे बेहोशी में, दोनों हाथ पट्टियों से बंधे! तीन दिन पूरा सांस जस का तहां अटका रहा । चौथे दिन आंखें खोलीं, मुस्कान दी, पहचानने की कोशिश ।
एक आईसीयू से दूसरे और फिर प्राइवेट रूम में शिफ्ट किया लेकिन आईसीयू में प्रतिदिन डाॅ उमेश कालड़ा के पेशेंट को विजिट करने के बाद हज़ारों रुपये काउंटर पर जमा करवाने का आदेश मिलता है। नौ दिन में दस हज़ार प्रतिदिन जमा करवाये। एक दिन में दस हजार रुपये की मुस्कान बेटी की !
फिर कुछ पर्चियों पर हरियाणा गवर्नमेंट यानी एक से चार गवर्नमेंट तो बाकी दस दिन सिर्फ आपका पैसा! दवाइयाँ खुद समझकर खिलाओगे। इस तरह चौदह दिन बाद वही इंजैक्शन घर पर लगवाने का निर्देश। पांच दिन बाद फिर दिन में चार चार, पांच गोलियां! पैसे हैं कि जैसे जब में टिकते ही नहीं, हाथ छूकर उड़ जाते रहे, उड़ रहे हैं । कभी यह दवाई, कभी वह दवाई! टाॅनिक, फल अलग। आखिरकार घर आये । आवाज़ तो साफ हो गयी लेकिन मुसीबत बनी कानों की जोड़ी! थोड़ी स्पोर्ट के लिए सत्तर हज़ार रुपये की मशीन भी। अभी अभ्यास चल रहा है। डाक्टर उम्मीद दिला रहा है कि सत्तर प्रतिशत एक साल के अंदर ठीक कर लूंगा ।
मोर जैसे पैरों को देखकर रोता है, वैसे ही कुछ दिन रोयी, उदास हुई पर फिर स्ट्रांग हुई और कहने लगी, मौज है अब अपने खिलाफ न कुछ सुनेगा, लड़ाई भी होगी कम! इस हौंसले की दाद देता हूं , यह कानों का नुकसान पांच माह से एक साल में सत्तर प्रतिशत पूरा कर देने का ईएनटी विशेषज्ञ ने दिलाया है भरोसा और भगवान् पर भी छोड़ा है । हमें घर बैठे कोशिश फिल्म याद आ रही है।
पच्चीस फरवरी से गुज़वि में जाॅब पर जाने लगी है । पहले तीन दिन मैं छोड़ने गया। किसी तरह अकेली ऑटो में लौट आ रही है। दिल धक्क् धक्क् करता रहता है, जब तक आ नहीं जाती । अभी बहुत वीक है । मेनगेट से डिपार्टमेंट तक पैदल जाती है, फिर बयालीस सीढ़ियां चढ़ते बुरी तरह हांफ जाती है ।
इस आर्थिक मोर्चे और मेडिकल मोर्चे पर इसके पति यशवीर ने पहली बार साथ दिया, मोक्ष वृद्धाश्रम की मां, प्रसिद्ध समाजसेविका श्रीमती पंकज संधीर ने हर पक्ष से हिम्मत बंधाये रखी । कुलपति प्रो नरसी राम बिश्नोई की धर्मपत्नी, हमारी भाभी वंदना बिश्नोई, शशि बख्शी व पंकज संधीर घर हाल जानने आते रहे । अस्पताल भी । ‌सरोज श्योराण राजबीर, राकेश मलिक के साथ प्रो दलबीर सिंह, अपनी पत्नी दीपिका जाटान के साथ अस्पताल घर दोनों जगह आये। छोटी बेटी प्राची व दामाद विनय लगातार साथ खड़े हैं। ज़िदल कंपनी से भागकर आकर सर्वोदय पहुंचाया जबकि उसके भी तीन से पांच हजार एम्बुलेंस के मांग रहे थे ज़िदल में ! वाह रे भारती! कैसा पत्रकार है तू, शालू जिंदल मुंहबोली बहन और तेरी बेटी रश्मि का यह हाल किया। ज़िंदल की इमर्जेंसी में एक चहल जी हैं, उन्होंने लगता शर्मा के फोन पर पांच हज़ार रुपये एडमिशन के वापिस करवाये! जिंदल अस्पताल का यह अंदर का रूप देखकर उदास हूं। जिस परिवार के साथ पत्रकारिता से ज्यादा रिश्ता हो बरसों से, उसी के जिंदल अस्पताल में कुछ संभाल होती तो बेटी के कान साबुत होते, इलाज लम्बा न चलता ।
मैं सीएमटी की विभाग व प्रो मनोज दयाल के साथ साथ कुलपति प्रो नरसी राम बिश्नोई व डाॅ वंदना बिश्नोई का हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ, जो इस मानसिक व शारीरिक कमज़ोरी के बावजूद उसका उत्साह बढ़ा रहे हैं । थोड़े समय की बात है, फिर उसकी कान की नर्ब्ज भी काफी प्रतिशत काम करने लगेंगीं। मैं उसके जज़्बे को सलाम करता हूं । उसमें जीने की भरपूर उमंग है। गुजवि के हैल्थ सेंटर की हैड डाॅ सरीना हसीजा ने भी एडवांस राशि एक ही फोन पर तुरंत निकलवा दी । रश्मि का बेटा आर्यन दस दिन तक रहा और अब रोज़ रात को वीडियो काॅल कर उत्साह बढ़ाता है
रश्मि मेरी बेटी से बढ़कर मेरी दोस्त है, साथी है, हम शाम इकट्ठे मार्केट जाते, अच्छे त्योहार, शादी ब्याह, पार्टी सब जगह एकसाथ !
मित्रो, इतनी सी कहानी है, इतना सा फसाना है
इक धुंध से चमक के वापस आना है !
बाकई बहुत उदास रहा, फोन उठाने को मन नहीं माना। फिर घरघुसरा ही बन गया। लिखना पढ़ना बंद। अखबार बंद । आज बेटी रश्मि ने ही कहा-पापा! मैंने तो ड्यूटी ज्वाइन कर ली। अब आप भी अपना लिखना पढ़ना शुरू करो! वादा ?
यह सारा संस्मरण पूरी रात बैठकर लिखा है, यदि आपको विश्वास हो तो !
अब हर फोन का जवाब दूंगा और शायद नभछोर के पाठकों को प्रतिदिन मिलूंगा भी, पहले की तरह ! वैसे प्रो दलबीर और दीपिका जाटान ने भी दो बार घर आकर फिर से लिखने के लिए प्यार भरा दवाब बनाया और लो शुरुआत हो गयी, सबको सवालों के जवाब भी दे दिये !
बस, आपकी दुआओं का नतीजा है।
दिल से दिल तक सबका शुक्रिया।
-पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी।
9416047075