HISAR,14.07.24-देश में पश्चिमी बंगाल, मध्यप्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, हिमाचल, बिहार व तमिलनाडु में हुए तेरह उपचुनावों में भाजपा को सिर्फ दो सीटों पर जीत हासिल हुई जबकि इंडिया गठबंधन को दस और एक निर्दलीय को विजयश्री मिली है ।

इन चुनाव परिणामों में जनता ने पंजाब, हिमाचल और उत्तराखंड में उन प्रत्याशियों को सबक सिखाया, जिन्होंने दलबदल कर भाजपा का दामन थाम लिया था । हिमाचल में तो तीन में से दो विधायक कांग्रेस के जीत जाने से मुख्यमंत्री सुक्खू की सरकार पर जो संकट मंडरा रहा था, वह जनता ने टाल दिया । याद रहे कि कांग्रेस के छह विधायकों ने सुक्खू के खिलाफ विद्रोह कर भाजपा का साथ दिया था लेकिन अयोग्य करार दिये गये और अब जनता ने भी इन्हें दलबदल का करारा सबक सिखाया ! धनबल की हार और जनबल की जीत, यही तो हमारा लोकतंत्र है ! जिसे संविधान नहीं बचा पाया, उसे जनता ने बचा लिया पर सुक्खू को भी विधायकों का सम्मान करना सीखना होगा !
कहानी पंजाब की भी अलग नहीं । बेशक आप की भगवंत मान की सरकार को कोई खतरा नहीं था लेकिन भाजपा के शीतल सन् 2022 में आप की टिकट पर जीते लेकिन फिर भाजपा में शामिल हो गये । अब जनता ने आप के मोहिंद्र भगत को विधानसभा पहुंचा दिया । शीतल को दलबदल की सज़ा जनता ने सुना दी ।
उत्तराखंड देवभूमि में दो उपचुनाव हुए और दोनों कांग्रेस ने जीते, जिसमें प्रसिद्ध तीर्थस्थल बद्रीनाथ में भी कांग्रेस की जीत मायने रखती है । खासतौर पर अयोध्या जैसे पवित्र संसदीय क्षेत्र से भाजपा के हार जाने के बाद, बद्रीनाथ से भाजपा का हारना हिंदुत्व के एजेंडे की हार के रूप में देखा जा रहा है । धर्म लोगों का अपना विश्वास है, इसे ऊपर से थोपा नहीं जा सकता ! संभवत: यही संदेश जनता ने देने की कोशिश की है । यह सीट पहले कांग्रेस के पास थी लेकिन इसके विधायक राजेंद्र भंडारी इस्तीफा देकर भाजपा में शामिल हो गये थे ! भाजपा ने उपचुनाव में फिर से भंडारी को टिकट दिया लेकिन जनता ने दलबदलू को उसकी सही जगह दिखाने में ही भलाई समझी ! अब राजेंद्र भंडारी के हाथ न माया लगी, न राम ! राजनीतिक कैरियर भी खराब कर लिया !
इन तीन राज्यों के उपचुनावों की ही चर्चा क्यों ? क्योंकि इन राज्यों में ये जनता ही है, जिसने भाजपा के 'ऑप्रेशन लोट्स' में साथ देने वाले दलबदलुओं को उनकी करतूतों और जनता के साथ किये गये विश्वासघात की कड़ी सज़ा दी है ! यह एक ऐसी हालत राजनीति में हो गयी कि किसी भी सरकार को 'ऑप्रेशन लोट्स' के नाम पर गिरा दो ! विधायक बिकने को हरदम तैयार लेकिन जनता तो बिकने को तैयार नहीं ! वह तो आपसे बराबर हिसाब मांगेगी और हिसाब बराबर भी कर देगी ! कर भी दिया वक्त आने पर !
कभी हरियाणा में इनेलो के सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला ने चौ बंसीलाल की सरकार गिराई थी, दलबदलुओं की मदद से और फिर जब विधानसभा चुनाव करवाये तो उन्हीं दलबदलुओं को टिकट नहीं दिये थे ! जो चौ बंसीलाल के नहीं हुए, वे मेरे कब तक रहेंगे ? यह सही फैसला था !
अभी देखिये हरियाणा में राव इंद्रजीत हैं, जो मुख्यमंत्री का सपना देखते देखते कांग्रेस छोड़कर भाजपा में चले गये लेकिन मुख्यमंत्री तो क्या बनना था, उनका दर्द यह है कि वे छह बार केंद्र में राज्यमंत्री ही बनाये जा रहे हैं, चाहे कांग्रेस में रहे, चाहे भाजपा में ! उनके बाद में आने वाले केबिनेट मंत्री बना दिये गये ! वे इंसाफ रथ बनाये बैठे हैं लेकिन पहले खुद को तो इंसाफ दिला लें‌ ! यह भी दलबदल की सज़ा नहीं तो क्या है ! इसी प्रकार चौ बीरेंद्र सिंह मुख्यमंत्री बनने का सपना लेकर‌ भाजपा में दस साल रहे लेकिन मुख्यमंत्री पद नहीं मिला । आखिरकार कांग्रेस में ही लौट आये ! किरण चौधरी हाल ही में कांग्रेस से भाजपा में शामिल हुई हैं और राज्यसभा टिकट के लिए भाजपा हाईकमान के चक्कर काट रही हैं ! यह दलबदल राजनीतिक चमक को माटी में मिला देय है ! एक दोहा शायद ज्यादा फिट बैठे :
खीरा सिर ते काटि के, मलिये नमक लाये
रहिमन कड़ुवे मुखन को, चाहिए यही सजाये !!
जनता ने दलबदलुओं को सबक सिखाना शुरू कर दिया है और अब दल बदलना ज़रा संभल के!!
-पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी
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