गुरुग्राम, 11.11.24 : व्यंग्य को साहित्य की पंगत में बिठाने का काम महत्त्वपूर्ण है । यह काम एक समय हरिशंकर पर साईं, शरद जोशी और डाॅ नरेंद्र कोहलीआदि ने किया और सबसे बढ़कर व्यंग्य को लोकप्रिय बनाने में योगदान दिया व्यंग्य के समाचारपत्रों में दैनिक स्तम्भों ने ! यह कहना है व्यंग्य के क्षेत्र में महती योगदान देने वाले व व्यंग्य यात्रा पत्रिका के संपादक डाॅ प्रेम जनमेजय का ! डाॅ प्रेम जनमेजय गुरुग्राम के एससीईआरटी के सभागार में हरियाणा लेखक मंच के तृतीय वार्षिक सम्मेलन में व्यंग्य की सहभागिता पर व्याख्यान दे रहे थे । डाॅ प्रेम जनमेजय ने कहा कि व्यंग्य की स्वीकार्यता जरूरी है । अपनी व्यंग्य की यात्रा पर बताया कि शैशवकाल से ही इससे गहरे जुड़ गये थे और फिर व्यंग्य यात्रा के प्रकाशन से इसका माहौल बनाने में जुटे हैं । पहले हरिशंकर परसाईं, त्यागी, शरद जोशी आदि सवालों से मुठभेड़ करते रहे और अब हमारी पीढ़ी यही काम कर रही है ।
डाॅ प्रेम जनमेजय ने कहा कि व्यंग्य मनोविज्ञानिक अस्त्र शस्त्र का काम करता है । उन्होंने हास्य और व्यंग्य को अलग करते उदाहरण दिया कि व्यंग्य जहां आग में घी डालने जैसा काम करता है, वहीं हास्य जैसे आग पर पानी के छींटे मारने के समान है ! उनके अनुसार हास्य व व्यंग्य दो एकदम विपरीत ध्रुव हैं । व्यंग्य मनुष्य को नपुंसक होने से बचाता है । इसमें विनोद की चुभन व व्यंग्य का डंक जरूरी है । व्यंग्य वह जो विसंगतियों के प्रति सजग करे । व्यंग्य की अलग भूमि व अलग चरित्र होता है । व्यंग्य को हास्य की बैसाखी की जरूरत नहीं ! व्यंग्य बहुत लिखा जा रहा है लेकिन कैसा लिखा जा रहा है, इस पर विचार करने की जरूरत है । इस अवसर पर डाॅ प्रेम जनमेजय के मराठी में अनुवादित व्यंग्य संकलन 'लक्ष्मीशरणम् गच्छामि' का विमोचन भी किया गया ।
हरियाणा लेखक मंच के द्वितीय सत्र में प्रसिद्ध आलोचक व रचनाकार डाॅ विनोद शाही ने सांस्कृतिक संकट और सृजन का आत्म संघर्ष पर सारगर्भित व विचारोत्तेजक व्याख्यान देते कहा कि आज मनुष्य के साहित्य को ही नहीं समूचे ज्ञान को सोशल मीडिया ने हथिया लिया है । यह विचार आता है कि ऐसे में मनुष्य के पास बचेगा क्या? हमारे सामाजिक संदर्भों की दुनिया ही हथिया ली गयी है । अब हमें यह चि़तन करना है कि हमारे सांस्कृतिक संकट का क्या स्वरूप है और इससे निकलने का उपाय क्या है? हमें पहले संकट को समझना होगा तभी इससे बाहर आने का कोई उपाय हो सकेगा । भाषा, धर्म और अध्यात्म का क्या स्वरूप हो गया है? मीरा कह सकती थी कि पाइयो जी मैंने राम रत्न धन पाइयो, हम नहीं कह सकते ! हम अपनी ज़मीन से कट गये, अब पांव रखें तो कहां रखें ? हमें अपने संसाधनों का बेहतर उपयोग करना होगा । प्राचीन परंपराओं को खोजना पड़ेगा । हम वैसे ही विश्वगुरु होने का दावा कर रहे हैं ।
डाॅ विनोद शाही ने कहा कि अब तक हमने साहित्य सृजन के माध्यम से अपने रास्ते खोजे हैं । हमें सृजन की नयी भाषाओं की तलाश है । सृजन के तलघर में लड़ी हुई लड़ाइयां हैं । यह दुखद स्थिति है कि हम सबने अपनी ज़मीन खो दी है । अब हम उधार की जगह पर खड़े हैं । परंपराबोध और भाषा हमें आलोचनात्मक दृष्टि प्रदान कर सकते है । गूगल की जानकारी से आगे की यात्रा हमारी यात्रा है । डाॅ शाही ने सचेत करते कहा कि गूगल हमारा साधन है, साध्य नहीं ! साध्य बनाओगे तो इसके गुलाम हो जाओगे !
प्रारम्भ में हरियाणा लेखक मंच के इस आयोजन की मुख्य आयोजिका डाॅ शशि कालिया ने कहा कि ऐसे चिंतन शिविर या कार्यशालायें युवा लेखकों की दिशा के लिए बहुत जरूरी हैं और इससे इनके लेखन को नयी दिशा मिलेगी। सह आयोजक मुकेश शर्मा ने सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव के बीच किताबों की घटती बिक्री पर गहरी चिंता जताई चिंता जताई ।
हरियाणा लेखक मंच के अध्यक्ष व हरियाणा ग्रंथ अकादमी के पूर्व उपाध्यक्ष रहे साहित्यकार कमलेश भारतीय ने कहा सभी अतिथियों का स्वागत् करते कहा कि यह सबसे बढ़िया रसायन है कि लेखक समाज से दुख पाकर बदले में सुख प्रदान करता है । समाज के लिए कबीर की तरह रात भर जागता है और चिंता करता है । समाज को जगाये रखने का काम करता है । उपाध्यक्ष डाॅ अशोक भाटिया ने अंत में आभार व्यक्त करते रसूल हमजातोव की बात कही कि मुझे विषय नहीं आंखें दो ! ये महत्त्वपूर्ण चिंतन का सिलसिला जारी रहेगा। विशिष्ट अतिथि विनोद प्रकाश गुप्त ने बदलते समाज, संस्कार व सोशल मीडिया पर चिंता व्यक्त की ।
हरियाणा लेखक मंच की ओर से अध्यक्ष कमलेश भारतीय व उपाध्यक्ष डॉ अशोक भाटिया ने वक्ताओं डाॅ प्रेम जनमेजय, डाॅ विनोद शाही, आयोजिका डाॅ शशि कालिया व सह आयोजक मुकेश शर्मा को सम्मानित भी किया ।
इस वार्षिक समारोह में इस वर्ष के दौरान प्रकाशित सदस्यों की पुस्तकों का विमोचन किया गया, जिनमें फूल कुमार राठी, मुकेश शर्मा, सुदर्शन रत्नाकर, अंजू दुआ जैमिनी, कमलेश मलिक, ब्रह्म दत्त शर्मा, संतोष बंसल, कमलेश भारतीय व दिलबाग अकेला की नव प्रकाशित पुस्तकों का विमोचन किया गया । विभिन्न सत्रों का संचालन मंच के संस्थापकों सदस्यों राधेश्याम भारतीय , ब्रह्म दत्त शर्मा, अजय सिंह राणा व पंकज शर्मा ने किया । पुस्तक प्रदर्शनी की जिम्मेदारी अशोक बैरागी, ममता प्रवीण व मदन लाल मधु ने संभाली ।
कार्यक्रम में डाॅ प्रज्ञा रोहिणी, डाॅ राकेश, रवि राय, विभा रश्मि, आशमा कोल,अनीता वर्मा, रोजलीन, रश्मि, नीलम, डाॅ आशा कुंद्रा, डाॅ उषा शाही, मोनिका शर्मा, ममता प्रवीण, अनिल श्रीवास्तव, रणविजय राव, राकेश, डाॅ मुक्ता, कृष्णलता यादव, कुसुम यादव, नरेंदर शॉरेन, जीतेन्द्र नाथ, सहित अन्य अनेक लेखक दूरदराज से आये और कार्यक्रम को सफल बनाने में सहयोग दिया ।