चण्डीगढ़ : गंगा दशहरा त्यौहार इस वर्ष 16 जून को पड़ रहा है। इस दिन हस्त नक्षत्र, सर्वार्थ सिद्धि योग, रवि योग, अमृत सिद्धि योग व वरियान् आदि श्रेष्ठ योग बन रहे हैं। इसलिए इस पर्व का महत्व और भी बढ़ जाता है। ये कहना है श्री खेड़ा शिव मंदिर, सेक्टर 28 डी के प्रधान पुजारी आचार्य ईश्वर चन्द्र शास्त्री का, जो श्री देवालय पूजक परिषद् चण्डीगढ़ के पूर्व प्रधान भी रहें हैं। उन्होंने जानकारी देते हुए बताया कि गंगाजी देव नदी हैं और यह जीवों के कल्याणार्थ इस पृथ्वी पर आई हैं। श्रीमद् भागवत महापुराण के अनुसार भगीरथ जी अपने पितरों की सद्गति के लिए गंगा जी को धरती पर लाए थे। गंगा जी का धरती पर अवतरण जेष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को हुआ। अतः यह तिथि गंगा दशहरा के नाम से प्रसिद्ध हुई। "दशमी शुक्लपक्षे तु, जेष्ठ मासे बुधेअहनि।
अवतीर्णा यत: स्वर्गात् , हस्तर्क्षे च सरिद्वरा ।।"
गंगा दशहरा के दिन गंगा-स्नान एवं गंगा पूजन का विशेष महत्व है। गंगा स्नान से पितर प्रसन्न होते हैं और उनका आशीर्वाद भी मिलता है। जो श्रद्धालु गंगा स्नान के लिए गंगा नदी पर नहीं जा सकते वे अपने घर में ही गंगा जी का आवाहन व ध्यान करके स्नान करें। 16 जून को गंगा दशहरा का पर्व मनाया जाएगा। 16 जून को प्रातः 2:32 बजे दशमी तिथि प्रारंभ हो जाएगी और सारा दिन दशमी तिथि रहेगी। अतः उदय तिथि के अनुसार 16 जून को ही गंगा दशहरा का पर्व मनाना उचित है।
विशेष संयोग....
अब की बार 16 जून को गंगा दशहरा के दिन हस्त नक्षत्र, सर्वार्थ सिद्धि योग, रवि योग, अमृत सिद्धि योग व वरियान् आदि श्रेष्ठ योग बन रहे हैं। इसलिए इस पर्व का महत्व और भी बढ़ जाता है।
निर्जला एकादशी
आचार्य ईश्वर चन्द्र शास्त्री ने ये भी जानकारी दी कि इस वर्ष निर्जला एकादशी का व्रत 18 जून को आ रहा है। उन्होंने कहा कि सनातन धर्म में व्रत, पूजा, अनुष्ठान आदि का बहुत महत्व बताया गया है। व्रतों में भी एकादशी व्रत को सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। एकादशी तिथि भगवान श्रीलक्ष्मीनारायण जी को समर्पित है। एक वर्ष में 24 एकादशियां आती हैं, सभी का अपना-अपना महत्व है। परंतु जेष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। इसे निर्जला एकादशी कहते हैं। निर्जला का अर्थ है बिना जल के। अर्थात् इस व्रत में अन्न की तो बात ही क्या, जल का भी परित्याग करना होता है। इस व्रत में जल भी ग्रहण नहीं किया जाता। पांडु पुत्र भीमसेन ने इस एकादशी का व्रत बड़ी श्रद्धा के साथ किया था इसीलिए इसे भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है। निर्जला एकादशी के दिन भगवान श्री लक्ष्मी नारायण की पूजा करें "ओम् नमो भगवते वासुदेवाय" इस मंत्र का जाप करें। विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें। भगवान का सुमिरन व सत्संग करके अपना समय व्यतीत करें। अगले दिन द्वादशी को व्रत का पारण करें। इस प्रकार व्रत करने से साधक के अंदर सकारात्मकता आती है, भगवान प्रसन्न होते हैं और साधक के मनोरथ पूर्ण होते हैं। इस बार निर्जला एकादशी का व्रत 18 जून को किया जाएगा। "संपूर्णेकादशी यत्र, प्रभाते पुनरेव च।
सर्वैरेवोत्तरा कार्या, परतो द्वादशी यदि।।"