पंचकूला, 24.09.24- : सोमवार को माता मनसा देवी परिसर के श्रीमुक्तिनाथ वेद विद्याश्रम संस्कृत गुरुकुल में चल रही श्रीमद्भागवत कथा का छठा दिन रहा। इसमें गुरुकुल के संस्थापकाचार्य स्वामी श्रीनिवासाचार्य महाराज कथावाचक हैं। उन्होंने भगवान की लीलाओं का वर्णन किया। श्रीनिवासाचार्य ने कहा कि भगवान ने महारस में सभी गोपियों के साथ एक साथ रास किया। उसी बीच में राधा को अभिमान हो गया कि भगवान मेरे साथ ही रास रचा रहे हैं। तब भगवान अंतर्ध्यान हो गए मानो वे यह बताना चाहते हो कि भक्ति में कभी अभिमान नहीं होना चाहिए। भक्तों के अंदर अगर अभिमान आ जाए तो भगवान वहां पलभर भी नहीं रहते। महाराज जी ने कहा कि श्री कृष्ण और राधा दोनों एक ही हैं। भगवान राम और सीता भी एक ही हैं। भक्तों के हृदय में ऐसा भाव होना चाहिए। स्वामी जी ने रुक्मिणी विवाह का वर्णन करते हुए कहा कि रुक्मिणी राजा भीष्म की पुत्री थी। वह साक्षात लक्ष्मी की अवतार थी। एक बार रुक्मणी ने महर्षि नारद के मुखारविंद से श्रीकृष्ण की सुंदरता के बारे में सुना तथा उनके सौन्दर्य और गुणों की प्रशंसा सुनी तो वह मन ही मन उनके सौंदर्य लावण्य पर मुग्ध हो गयी और भगवान श्रीकृष्ण से विवाह करने का निश्चय किया। रुक्मणी का बड़ा भाई भगवान से बहुत शत्रुता रखता था और अपनी बहन का विवाह शिशुपाल से कराना चाहता था। तब रुक्मिणी ने एक ब्राह्मण के द्वारा भगवान को विवाह करने का संदेश भिजवाया। तब भगवान ने वहां पहुंचकर शिशुपाल आदि को युद्ध में हराकर ही रुक्मिणी जी के साथ शादी की।