चण्डीगढ़, 03.08.24 : आर्य समाज, सेक्टर 7 बी में वेद प्रचार सप्ताह के अन्तर्गत, श्रावणी पर्व के अवसर पर आध्यात्मिक वैदिक विद्वान आचार्य योगेन्द्र याज्ञिक ने प्रवचन के दौरान कहा कि मनुष्य का जीवन प्रेम और वात्सल्य के बीच शुरू होता है। मनुष्य का जीवन प्रसन्नता -अलाप के साथ चलता है। मानव धर्म, संपत्ति, संपदा, स्वास्थ्य, परिवार, समाज, और दूसरों के सुख के बारे में सोचता है। परमात्मा को पाने के लिए पुरुषार्थ करना आवश्यक है। रोने की मानसिकता गलत है। महर्षि दयानंद सरस्वती जी ने लोगों को सोचने का तरीका बताया। आज लोग अपना सुख और आनंद दूसरों के पास गिरवी रखते हैं। सुख- दुख को दूसरों पर आधारित कर दिया है। सुख-दुख की चाबी केवल अपने पास ही रखें। ईश्वर ने मनुष्य को कर्म करने के लिए स्वतंत्र बनाया है। निंदा और अपयश करने वालों से हमेशा दूर रहें । जीवन में बुरा न करें। जैसा मनुष्य होता है उसके साथ वैसा ही व्यवहार करना चाहिए। यदि दुष्ट दुष्टता लेकर कार्य कर रहा है। तो उसी तरीके से निपटना चाहिए। पं. भानु प्रकाश शास्त्री, भजनोपदेशक ने मधुर भजन प्रस्तुत किये। इस मौके पर भिन्न-भिन्न आर्य समाजों और डीएवी शिक्षण संस्थाओं से काफी संख्या में लोग उपस्थित थे