जीरकपुर / मोहाली, 06.04.25- : सर्व मंगल सोसाइटी में चल रही राम कथा के 8वें दिन संस्कृत गुरुकुल के स्वामी श्रीनिवासचार्य ने भगवान श्रीराम के वन जाने के प्रसंग को सुनाया। इसके बाद स्वामी जी ने भरत चरित्र सुनाया। कहा, गोपी भाव के परम आचार्य श्री भरत जी महाराज हैं। सिर बल जाऊ उचित अस मोरा, सबसे सेवक धरम कठोरा यानी सेवक तो सभी बन जाते हैं लेकिन सेवक धर्म का पालन करना सीखना है तो महाराज भरत जी से सीखिए। स्वामी श्रीनिवासचार्य ने कहा, जब भगवान श्रीराम जब बाल्मीकि आश्रम पहुंचे तो महाराज बाल्मीकि ने श्रीराम को श्रुति सेतु पालक यानी सनातन धर्म के मजबूत खम्भे के रूप में बताया। मां भगवती - जग जननी को माया बताया और लक्ष्मण जी को पूरे ब्रह्मांड काे अपने शीष पर धारण वाले वाले शेषनाग बताया। महाराज बाल्मीकि कहते हैं - भगवान सिर्फ उन्हीं लोगों के दिल में रहते हैं जिनका दिल फूलों की तरह पवित्र और कोमल होगा। जब हम शरीर से प्रभुु की सेवा करेंगे और अपने मुख से भगवान के नाम लेते हैं, और छल-कपट का छोड़ते हैं तभी हमें सही मायनों में ईश्वर की कृपा प्राप्त होती है।